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रबी सीजन में सरसों की खेती के लिए ये पांच उन्नत किस्में काफी शानदार हैं

रबी सीजन में सरसों की खेती के लिए ये पांच उन्नत किस्में काफी शानदार हैं

सरसों रबी की प्रमुख फसलों में से एक है। बतादें, कि सरसों की खेती भारत के बहुत से राज्यों में प्रमुखता से की जाती है। यदि सरसों की उन्नत किस्मों की बात की जाए तो उनमें राज विजय सरसों-2, पूसा मस्टर्ड 21, पूसा सरसों आरएच 30, पूसा बोल्ड और पूसा सरसों 28 हैं। दरअसल, भारत के तकरीबन समस्त राज्यों में फसलों की बिजाई से लेकर कटाई तक सबकुछ मौसम पर आश्रित रहता है। जैसा की आप जानते हैं, कि खरीफ की फसलों की कटाई का समय चल रहा है। साथ ही, किसान रबी फसलों की बिजाई की तैयारी कर रहे हैं। वहीं, रबी फसल में बोई जाने वाली प्रमुख फसलों में आलू, मटर, सरसों, गेंहू आदि हैं। आज हम आपको सरसों की बेहतरीन किस्मों के संबंध में आपको जानकारी देंगे। सरसों की इन उन्नत किस्मों के नाम पूसा बोल्ड, पूसा सरसों 28, राज विजय सरसों-2, पूसा मस्टर्ड 21 और पूसा सरसों आरएच 30 हैं। यह सभी भारत में तिलहन के उत्पादन में सर्वाधिक पसंद की जाने वाली सरसों की किस्में हैं। ये किस्में किसानों प्रति हेक्टेयर कम लागत में ज्यादा मुनाफा देती हैं। इनका उत्पादन भी बाकी किस्मों की तुलना में ज्यादा होता है। तो चलिए सरसों की इन किस्मों के संबंध में विस्तार से जानते हैं।

सरसों की खेती के लिए 5 उन्नत किस्में

सरसों पूसा बोल्ड

सरसों पूसा बोल्ड की कटाई हेतु पकने की समयावधि 100 से 140 दिन होती है। इसकी बुवाई करने के लिए राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र एवं दिल्ली का क्षेत्र उपयुक्त माना जाता है। अगर हम इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार की बात करें तो यह 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्रदान करती है। इसके अंदर तेल की मात्रा तकरीबन 40 प्रतिशत तक होती है।

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पूसा सरसों 28

फसल पकने व कटाई की समयावधि 105 से 110 दिन होती है। इसकी बुआई हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में की जाती है। किसान भाई इससे प्रति हेक्टेयर 18 से 20 क्विंटल उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। तेल की मात्रा की बात की जाए तो तकरीबन 21 प्रतिशत तक है।

राज विजय सरसों-2

फसल पकने की समयावधि 120 से 130 दिन तक की होती है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में इसका उत्पादन किया जाता है। वहीं, इससे औसत पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। तेल की मात्रा तकरीबन 37 से 40 प्रतिशत तक होती है।

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पूसा सरसों आर एच 30

सरसों की इस किस्म की फसल को पकने में लगभग 130 से 135 दिनों का समय लगता है। इस किस्म की बुआई का इलाका हरियाणा, पंजाब एवं पश्चिमी राजस्थान होता है। वहीं, अगर हम प्रति हेक्टेयर की बात करें तो वह 16 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। अगर हम इसके अंदर तेल की मात्रा की बात करें तो वह लगभग 39 प्रतिशत तक होती है।

पूसा मस्टर्ड 21

इस किस्म की फसल के पकने की समयवधि 137 से 152 दिनों के लगभग होती है। बतादें, कि पंजाब, राजस्थान और दिल्ली में प्रमुख तौर पर इसका उत्पादन किया जा सकता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इससे प्रति हेक्टेयर 18 से 21 क्विंटल उत्पादन लिया जा सकता है। इस किस्म की सरसों से तेल की मात्रा की बात करें तो वह करीब 37 से 40 प्रतिशत तक होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुवांशिकी संस्थान के मुताबिक इन इलाकों के किसान यदि ज्यादा उत्पादन चाहते हैं, तो सरसों की ये किस्में कृषकों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकती हैं। ये समस्त किस्में प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन के साथ में अधिक प्रतिशत तेल की मात्रा पैदा करती हैं।
टॉप तीन में आने वाली सरसों की इन किस्मों से होगा शानदार उत्पादन

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किसान भाइयों जैसा कि सब जानते हैं, कि सरसों की तीन उन्नत प्रजातियां एनआरसीडीआर-2, एनआरसीएचबी-506 हाइब्रिड एवं एनआरसीडीआर-601 किसान को प्रति हेक्टेयर तकरीबन 26 क्विंटल तक उत्पादन प्रदान करेंगी। जो कि तकरीबन 137-156 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं। ये समस्त किस्में ICAR-डीआरएमआर द्वारा तैयार की गई हैं। रबी की तिलहनी फसलों के अंतर्गत मुख्य स्थान सरसों का है। यदि देखा जाए तो सरसों की फसल सीमित सिंचाई की स्थिति में ज्यादा फायदेमंद मानी जाती है। यदि किसान सरसों की शानदार किस्मों का चयन करें एवं सही तरीके से खेती करें, तो वह कम समयावधि में ही सरसों की फसल से बेहतरीन पैदावार अर्जित कर सकते हैं। इसी कड़ी में आज हम किसानों के लिए सरसों की टॉप तीन प्रजातियों की जानकारी लेकर आए हैं, जिसकी खेती भारत के हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और दिल्ली सहित भारत के विभिन्न राज्यों में सुगमता से की जा सकती है। सरसों की यह समस्त प्रजातियां 137-156 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त इन उन्नत प्रजातियों की खेती से किसान प्रति हेक्टेयर करीब 26 क्विंटल तक पैदावार हांसिल कर सकते हैं। सरसों की मुख्य तीन किस्मों की बात कर रहे हैं, जो कि क्रमशः एनआरसीडीआर-2, एनआरसीएचबी-506 हाइब्रिड और एनआरसीडीआर-601 हैं। इन प्रजातियों को ICAR-डीआरएमआर द्वारा तैयार किया गया है।

टॉप तीन में आने वाली सरसों की तीन उन्नत किस्में

सरसों की एनआरसीडीआर-2 किस्म की जानकारी

सरसों की इस उन्नत किस्म की खेती दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा एवं जम्मू और कश्मीर के किसान सुगमता से कर सकते हैं। इसके पौधे की लंबाई 165-212 सेमी तक होती है। साथ ही, सरसों की यह प्रजाति 131-156 दिन में पूर्णतय पककर तैयार हो जाती है। NRCDR-2 किस्म से किसान प्रति हेक्टेयर तकरीबन 26 क्विंटल तक उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त सरसों की NRCDR-2 किस्म में तेल की मात्रा 36.5- 42.5 फीसद तक होती है। साथ ही, इस किस्म के अंदर स्क्लेरोटिनिया स्टेम रोट, पाउडरी मिल्ड्यू, एफिड्स, सफेद रतुआ और अल्टरनेरिया ब्लाइट का कम आक्रमण होता है।

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एनआरसीएचबी-506 हाइब्रिड किस्म सबसे ज्यादा कहाँ होती है

सरसों की यह किस्म राजस्थान और उत्तर प्रदेश के इलाकों के लिए सबसे अच्छी होती है। इसके पौधे लंबाई में लगभग 180-205 सेमी तक होते हैं। सरसों की एनआरसीएचबी-506 हाइब्रिड किस्म 127-148 दिन में पककर तैयार हो जाती है। किसान इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल तक पैदावार हांसिल कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त इस किस्म में तेल की मात्रा की बात करें तो वह 38.6- 42.5 फीसद के मध्य होती है।

सरसों की एनआरसीडीआर-601 किस्म इन राज्यों में की जाती है

सरसों की इस उन्नत किस्म का उत्पादन हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, पंजाब और दिल्ली के विभिन्न इलाकों में की जाती हैं। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 26 क्विंटल तक उत्पादन प्रदान करने में सक्षम है। खेत में सरसों की NRCDR-601 किस्म 137-151 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म के सरसों के पौधों की ऊंचाई 161-210 सेमी तक होती है। सरसों की इस किस्म में सफेद रतुआ, (स्टैग हेड), अल्टरनेरिया ब्लाइट और स्क्लेरोटिनिया जैसे रोग नहीं लग पाते हैं।